मेरी स्वरचित कविताएँ


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चाहता था

अमीर बनना चाहता था
ग़रीब भी ना बन सका

क़िताबें पढना चाहता था
अखबार भी ना पढ़ सका

साहब बनना चाहता था
क्लर्क भी ना बन सका

दुनिया घूमना चाहता था
शहर भी ना देख सका

शायर बनना चाहता था
एक कविता भी ना लिख सका

इश्क करना चाहता था
उसकी तरफ देख भी ना सका

इंसान बनना चाहता था
अच्छा बेटा भी ना बन सका

मैं जीना चाहता था
मर भी मन से ना सका


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हम

सरहद और धर्म के परे
एक दुनिया है
जहाँ हम पाक हैं
सब साफ़ हैं
सुर्ख लाल खून हैं
हल्की गर्म सांस हैं

हम हिन्दू भी हैं और हैं मुसलमाँ भी
हम यहूदी भी और इसाई भी
हमने गीता भी पढ़ी, पढ़ा क़ुरान भी
हम ब्रह्मा भी हैं और अल्लाह भी
हम ही बिग-बैंग भी

हम ईरानी भी हैं और अमेरिकी भी
इज़राएली भी फ़िलिस्तीनी भी
हाऊदी और सऊदी हम ही
हिन्दुस्तानी भी और पाकिस्तानी भी
हम चीनी भी ताईवानी भी
हम ही किम और मून के कोरियाई हैं

हम रोहिंग्या भी हैं
उईघुर भी हम ही
हम मेक्सिकन भी और हम ही बांग्लादेशी
हम ही तमिल और हम ही हुतू

हम ट्रंप हैं, हाँ हम बाइडेन भी हैं
हम नेतन्याहू भी हैं, हम गान्त्ज़ भी हैं
हम बोल्सोनारो हैं, हम लुला भी हैं
हम ही राहुल हैं और हम ही मोदी भी हैं
हम ही अब्दुल्लाह हैं और हम ही घनी
हम लुकाशेंको भी, हम तिखानौस्काया भी
हम ही नवाल्नी और पुतिन दोनों
तात्मादाव हम, सू की भी हम

हम अल्काएदा भी हैं
और एफ़-बि-आइ भी हम ही हैं
हम राम मंदिर हैं
हम हगिया सोफ़िया भी हैं

सरहद और धर्म के परे
एक दुनिया है
एक दुनिया है आकाश में भी
एक दुनिया है समुद्र तल में
एक दुनिया है नदी तट पर
भूगोल की भी दुनिया है
इतिहास में भी दुनिया है

यहाँ हम ही गाँधी हैं और
गोडसे भी हम ही
बाबर हम इब्राहिम लोदी हम
पानीपथ घर भी हमारा
हम गौड़ के शशांक
महाबोधि पेड़ भी हमारी
हम मौर्य हैं और धनानंद भी
पाटलिपुत्र भी है हमारी

शिया भी हम सुन्नी भी हम
भक्ति भी हम सूफ़ी भी हम
हम ही नयनर हम ही अलवर
राम और रावण दोनों ही हम
कल कंस आज कृष्ण भी हम

सही और ग़लत से परे
मन के तारों में उलझे
हम ही भूखे, चोर भी हम ही
हम ही सेवक, घुसखोर भी हम ही
हम आम और ख़ास भी हम
हम हत्यारे, लाश भी हम

हम ही तो हैं सब
सरहद और धर्म के परे
सही और ग़लत के बादलों के ऊपर
शांत और चंचल
हैवान हैं हम
भगवान हैं हम

हम ही हैं
बस हम
तुम ना थे ना हो ना होगे
तुम हम हो और हम तुम
तो बस हम ही हैं
सरहद और धर्म के परे
गलियों में
मोहल्लों में
कस्बों में
शहरों में
हर वतन में
और हाँ, अंतरिक्ष में भी

कविताओं में
कहानियों में
विचारधाराओं में

सब हम ही तो हैं

सब हम हैं


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ऐ कमबख्त, तू क्या चीज़ था

मोहब्बत भी सिखाया, नफ़रत भी कराया 
ऐ कमबख्त, तू क्या चीज़ था 
हँसना भी बताया, आंसू भी पिलाया 

हर एक लफ्ज़ को तूने ही बनाया 
मोहब्बत का इकरार भी तुमने ही चखाया 
दर्द भी दिखाया और शायर भी बनाया  


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चला जा रहा था इतनी शिद्दत से मैं उसे भूल के 
लेकिन पहुँच ना सका और वो फिर आ कर चुभ सी गयी 
लहर तो अनगिनत ही थे, मगर वो ही एक सैलाब थी 
सैलाब जिसमे मैं कई बार डूब के मर चुका था  


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चार साल

कुछ यादें हैं 
कुछ किस्से हैं 
कुछ ख़ुश – मिजाज़
कुछ दर्द भरे

खिल खिला कर हंसा भी हूँ 
सुबक कर रोया भी हूँ 
इन्हीं पेड़ों के नीचे 
इसी जगह 

कभी दिल टूटे 
तो कभी दिल तोड़े 
कभी अकेले ही घुमा 
तो कभी सबके साथ 

हर रास्ते में कुछ यादें हैं 
हर कोने में बिताये शाम ताज़े हैं 
आया था तब तो मासूम था 
आज हर ग़म धुंए में उड़ा देता हूँ

हर रास्ते याद हैं जहाँ हाथों को थामना सीखा 
हर कोने याद हैं जहाँ इश्क में रातें गुज़ारीं 
ज़िन्दगी और इंजीनियरिंग दोनों के इम्तेहान भी याद हैं 
जब रातें और सवेरे मिल कर एक हो गए 

चार साल कम होते हैं क्या ?
कितना नादान था जब यहाँ आया था 
आज ज़िन्दगी संवारने की जद्दोजह्ज़ है 
आज पैसे कमाने का बोझ है  


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एक रस्ते का सफ़र था

एक रस्ते का सफ़र था, जो सौ नहीं सिफ़र था
मंजिल दूर नहीं थी, पर पहुंचना किधर था ?
ना दोस्त थे, ना भाई था, ना ही कोई घर था
अपने छोड़ चुके थे, बस हाथ में हुनर था

नियत मेरी साफ़ थी और हौसला बुलंद था
आँखों में उम्मीद थी, कन्धों पे बोझ था
ना हुनर की तारीफ़ थी, ना सोने को कब्र था
दो जून की रोटी अभी बहुत दूर का डगर था

रास्तों के पत्थरों को लांघना मैं सीख रहा था
बुराइयों में अच्छाइयां निकलना मैं सीख रहा था
अनजान चेहरों को पहचानना मैं सीख रहा था
नफरत की दुनिया को हसाना मैं सीख रहा था

एक रस्ते का सफ़र था, जो सौ नहीं सिफ़र था
पास का जंगल भी, बड़े-अमीरों का जिगर था
रास्ते की झोपड़ी थी, पर ताज महल किधर था ?
गरीबों का श्मसान था, अमीरों का शहर था


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है उज्वलित, है प्रज्वलित !

है उज्वलित, है प्रज्वलित
है ये भविष्य सूर्य धृत
है ब्रम्हा का सा ज्ञान तेज
व देह अग्नि देव कृत

लाल रक्त धार सा
काली के श्रृंगार सा
शेर के दहाड़ सा
ग्रीष्म बुद्धि का प्रवित्य

है बल-चरित्र राम सा
गुण लंकापति महान सा
है सिद्धि हनुमान सा
सत्य कृत्य, हिन्दू कृत्य

है उज्वलित, है प्रज्वलित 
है ये भविष्य सूर्य धृत
है विष्णु का सा लोक ध्यान
अनंत सा है ज्ञान पृथ1

चक्रव्यूह के भेद सा
सूर्य के प्रकाश सा
तीन लोक सर्व श्रेष्ठ
विवृत2 विशेष लोक प्रेष्ठ3

है मान आशुतोष सा
विहान तपन तेज सा
रात्र के भावित्र4 सा
मैं काल चक्र का स्थातृ5  

 

 

कुछ शब्द व उनके अर्थ :-

  1. पृथ – एक तरह की इकाई
  2. विवृत – प्रजा / जनता
  3. प्रेष्ठ – सबसे अधिक प्रिय
  4. भावित्र – ब्रम्हांड
  5. स्थातृ – चालक

 


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मैं वो प्रकाश हूँ

मैं बाज़ के आगाज़ सा उड़ता फिरूं
मैं काले स्याह चट्टानों से ना गिरूँ
ज़िन्दगी के आँधियों को चीरता हूँ
कोई नहीं है शेर सा, जिस से डरूं

आकाश के बादल भी अब छंट जाते हैं
जब गुज़रता देख लेते हैं मुझे
तान के मैं सीना, चलता रहूँ
है ये मेरी आवारगी, फिरता रहूँ

मैं बाज़ के आगाज़ सा उड़ता फिरूं
मैं काले स्याह चट्टानों से ना गिरूँ
ऊँचे पहाड़ों को भी चला मैं लांघ के
नदियों को भी बादल सा मैं, भिगाता चलूँ

हर पेड़ भी मुझको हैं अब पहचानते
हर पत्तियां, फल-फूल मुझको जानते
झरने भी अब पानी हैं मुझसे मांगते
मैं बादलों को गोद में उड़ाता चलूँ

मैं बाज़ के आगाज़ सा उड़ता फिरूं
मैं काले स्याह चट्टानों से ना गिरूँ
चन्द्रमा के दाग को भी साफ़ कर
सूर्य का सा तेज़, बिखराता रहूँ

ग्रह-गोचरों की हैं दिशाएं हाथ में
समय को भी रखता हूँ मैं साथ में
उड़ता हुआ ब्रम्हांड को ले गोद में
तारों को देता है जो, मैं वो प्रकाश हूँ 


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एक नज़्म उस शहर के नाम

वो शहर गुज़र गया जहाँ मैं तुम्हें देखता था
तुम मुस्कुराती थी, नज़रें मुझसे छुपाती थी
लेकिन मुझे पता है, तुम भी मुझको चाहती थी

वो जो तेरे आँखों से जज़्बात बहते थे,
जिन्हें मैं समझने की पूरी कोशिश करता था
लेकिन पता नहीं वो जज़्बात थे, या तेरी आँखों की अदाएं

उस शहर में आज पता नहीं कौन देखता है तुम्हे
क्यूंकि तुम तो आज भी वहां की शहज़ादी हो, और
अब भी बहुत नौकरशाह रहते हैं वहां

क्या आज भी महलों के छत से तुम रात में झांकती हो ?
क्या इसे भी तुम नदी किनारे उसी रास्ते पे ले जाती हो ?
और क्या तुम्हे वो बाहों में बाँध के वैसे ही सुलाता है ?

मुझे तो उस नदी किनारे वाले रास्ते की फ़िक्र है
वो कितने वीरान होंगे, सुनसान होंगे,
उन्हें भी तेरी – मेरी याद तो आती होगी

जो आज नदी में उफान तुम देखती हो ना
जो आज रास्ते में बाढ़ है, तुम सहती हो ना
वो उन रास्तों के आंसू हैं जो तेरे बेवफ़ाई से मिले हैं